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किताब ===== किताब कहती रही इंसान को इंसान बनो दिल

किताब
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किताब कहती रही इंसान को इंसान बनो
दिल ने बोला कि अपने नाम आसमान करो
ताक पर टाँग कर इंसानियत वो किताबों वाली
कहा प्रज्ञा ने कि बंदे फतह तमाम करो

बनाया राम और रहीम की दुनिया को अलग
बताया शूद्र और कुलीन के लहू को अलग
किताब में जो दुनिया पढ़ी प्रीति वाली
वो अब इतराते हैं दुनिया को कर प्रीति को अलग

शब्द मुरझाए हैं किताब में साँसों केलिए
पंक्तियाँ ज्ञान की रोती नए आसों केलिए
सींच कर नेकनीयती से आत्मसाथ करे
किताब है सुधा सागर इसके प्यासों केलिए।

✍ रागिनी प्रीत

©Ragini Preet
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