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दिल के किसी कोने में क्यूँ ढूंढती हो ख़ुद को तुम

 
दिल के किसी कोने में 
क्यूँ ढूंढती हो ख़ुद को तुम
तुम तो मेरे पूरे दिल की मल्लिका हो।
तुम्हारी साँसों से मिलकर ही तो
ये साँसे चलती हैं
तुम्हारी आँखों से ही तो इस संसार की
खूबसूरती देख पाता हूँ मैं।
अपनी गोद में लिटाकर जब तुम
मेरे बालों में उंगलियां फेरती हो
अनंत सुकून के सागर में खुद को पाता हूँ मैं।
तुम्हारा मेरी ज़िंदगी में होना ही तो
मेरे अहसासों को ज़िंदा रखे है।
दिल के किसी कोने में
क्यूँ ढूंढती हो तुम खुद को
तुम तो मेरे पूरे दिल की मल्लिका हो।

©Prashant Shakun "कातिब"
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