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रूठ कर क्यों बैठा है //////////\\\\\\\\\\ आओ हम

रूठ कर क्यों बैठा है
//////////\\\\\\\\\\
आओ    हम     गला    मिलें,
रूठ    कर    क्यों    बैठा  है।
वक्त     का      तकाजा     है,
टूट   कर     क्यों    बैठा    है।
जिंदगी  कांटों  का  बगान  है,
समय   खुद    में   महान   है।
कभी पतझर कभी  हरियाली,
कभी    नदी    कभी    नाली।
किस्मज  भी  एक  कहानी है,
कभी बुढ़ापा कभी जवानी है।
लंबी   सूची   है   शब्दों    की,
अनगिनत रुचि है बेरुखी लफ्जों की।
सख्त   कदम   सब   पड़   गए  ढीले,
आओ हम गला मिलें।।
कुछ  पर दौलत का  नशा छा  गया,
चादर फटी है मगर, घमंड आ गया।
अपनों   ने    दरकिनार   कर   दिया,
खुद  मस्तिष्क  से  बीमार  हो  गया।
हंसना     भी     अब      सपना    है,
मुंह  लटकाकर  राम नाम जपना  है।
पी   रहा   है   खून , चिंता   चुपचाप,
देख रहा हाड़  का पुतला,रोता  बाप।
रोशनी  को भी  रौशन करना  सिखो,
अपना     किस्मत      खुद     लिखो।
आओ  हम   निर्भिक  होकर  जी  लें,
आओ        हम        गला      मिलें।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से
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©pramod malakar # रूठ कर क्यों बैठा है।
रूठ कर क्यों बैठा है
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आओ    हम     गला    मिलें,
रूठ    कर    क्यों    बैठा  है।
वक्त     का      तकाजा     है,
टूट   कर     क्यों    बैठा    है।
जिंदगी  कांटों  का  बगान  है,
समय   खुद    में   महान   है।
कभी पतझर कभी  हरियाली,
कभी    नदी    कभी    नाली।
किस्मज  भी  एक  कहानी है,
कभी बुढ़ापा कभी जवानी है।
लंबी   सूची   है   शब्दों    की,
अनगिनत रुचि है बेरुखी लफ्जों की।
सख्त   कदम   सब   पड़   गए  ढीले,
आओ हम गला मिलें।।
कुछ  पर दौलत का  नशा छा  गया,
चादर फटी है मगर, घमंड आ गया।
अपनों   ने    दरकिनार   कर   दिया,
खुद  मस्तिष्क  से  बीमार  हो  गया।
हंसना     भी     अब      सपना    है,
मुंह  लटकाकर  राम नाम जपना  है।
पी   रहा   है   खून , चिंता   चुपचाप,
देख रहा हाड़  का पुतला,रोता  बाप।
रोशनी  को भी  रौशन करना  सिखो,
अपना     किस्मत      खुद     लिखो।
आओ  हम   निर्भिक  होकर  जी  लें,
आओ        हम        गला      मिलें।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से
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©pramod malakar # रूठ कर क्यों बैठा है।