अब अश्रुधारा मोती नहीं अंगार बन रहे हैं, खुद ही के आग में इसलिए जल रहे हैं, मोती सीप में छुपा भी ले कोई, धधकते अंगार को भला कैसे संभाले कोई, ऐ जमाने वालों न अब इसे हवा दो, अंगार को न ज्वालामुखी सा बना दो! छुपा गुस्सा