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अब अश्रुधारा मोती नहीं अंगार बन रहे हैं, खुद ही के

अब अश्रुधारा मोती नहीं अंगार बन रहे हैं,
खुद ही के आग में इसलिए जल रहे हैं,

मोती सीप में छुपा भी ले कोई,
धधकते अंगार को भला कैसे संभाले कोई,

ऐ जमाने वालों न अब इसे हवा दो,
अंगार को न ज्वालामुखी सा बना दो! छुपा गुस्सा
अब अश्रुधारा मोती नहीं अंगार बन रहे हैं,
खुद ही के आग में इसलिए जल रहे हैं,

मोती सीप में छुपा भी ले कोई,
धधकते अंगार को भला कैसे संभाले कोई,

ऐ जमाने वालों न अब इसे हवा दो,
अंगार को न ज्वालामुखी सा बना दो! छुपा गुस्सा