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सुनो प्रिये, एक ख़त लिखा था कभी मैंने जो तुम्हें,

सुनो प्रिये, एक ख़त लिखा था कभी मैंने जो तुम्हें,
मुझे तो वह ख़त याद है, शायद याद हो न हो तुम्हें।
उस ख़त में न जाने कितनी अनकही सी बातें रह गईं,
वक्त गुज़र गया, मगर वे बातें वहीं की वहीं दबी रह गईं।

©Amit Singhal "Aseemit"
  #ख़त