तुम्हारी चुप्पी और मेरी खामोशी कुछ समझाती दरम्यां जो भी हो, जुदाई के चंद फूल तो उगाती ये जुदाई, तन्हां, भीगी ओस की बूंद की तरह है दर्द के सैलाब में बहते किसी "कमल" की तरह है वजह क्या है, दुनियादारी के कुछ हिस्से है जिनमें कुछ तुम्हारे तो कुछ मेरे ही किस्से है पैबंद लगी कई सोच, हमदोनों को कितना इठलाती है कठपुतली है, किसी गैर की अंगुली से नाच दिखाती है हक के झूठे जंगल में, हम कितना कुछ खोज लेते है सच तो ये है, पाने के बाद उसे लावारिस ही कर देते है खामोशी हो या चुप्पी, है तो, ये दिल की कोई जलन है बैठे है पास, पर जो तरस रहा है, वो शब्दों का मिलन है आओ दावेदारी की महफ़िल से अब निकल चलते है दो तेरा हाथ मेरे हाथ में, फिर खामोशी से गले मिलते है ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali नाजायज जुदाई #brothersday