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कहने को तो बहुत है प्रश्न ये है कैसे कहूँ ? भला अप

कहने को तो बहुत है
प्रश्न ये है कैसे कहूँ ?
भला अपनी पीड़ा
सच में कोई समझ पायेगा...
अपनी तरह.....
कोई एक इन्सान 
मिल पायेगा
अपनी तरह.....
जो सुने और समझाये
जो भी है उलझन
उसे सुलझाये.....
नही तो..
ऐसा आज तक हुआ नही
आगे भी असंभव है..
इन्सान बचा ही कहाँ है
इन्सान के देह
केवल मांस का पुर्जा रहता है
इन्सान कहलाने के लिए.....शायद
मैं भी उन्हीं में ही हूँ.....

मी माझी.....

©Sangeeta Kalbhor
  कहने को तो बहुत है
प्रश्न ये है कैसे कहूँ ?
भला अपनी पीड़ा
सच में कोई समझ पायेगा...
अपनी तरह.....
कोई एक इन्सान 
मिल पायेगा
अपनी तरह.....

कहने को तो बहुत है प्रश्न ये है कैसे कहूँ ? भला अपनी पीड़ा सच में कोई समझ पायेगा... अपनी तरह..... कोई एक इन्सान मिल पायेगा अपनी तरह..... #शायरी

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