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#मसरुफ़ियत मसरूफ़ियत में आदमी इतना मशगू़ल हो जाता

#मसरुफ़ियत

मसरूफ़ियत में आदमी इतना मशगू़ल हो जाता है
कितने दिन वो ख़ुद से नहीं मिल पाता है
भागता रहता है सुबह से शाम
कभी न खत्म होती दौड़ में

जो पास है ख़ुद के उसको भी खो जाता है
आलम यह हो जाता है भूख बढ़ जाती है 
दुनिया की दौलत की 
अपनी रूह को मारता जाता है

जवानी में जिस पैसे को मेहनत से बटोरा था
बुढापे में अपनी बीमारी पर लुटाता है
काम फिर भी कुछ नहीं आता है
आख़िर में ईश्वर अल्लाह चिल्लाता है

ज़िंदगी बीत जाती है तब समझ आता है
जवानी में ही क्यों नहीं 
सजदे में सर झुकाता है

©Nitu Singh जज़्बातदिलके
  #मसरुफ़ियत

मसरूफ़ियत में आदमी 
इतना मशगू़ल हो जाता है
कितने दिन वो ख़ुद से
नहीं मिल पाता है
भागता रहता है सुबह से शाम
कभी न खत्म होती दौड़ में

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