आज अपने उम्र के पड़ाव पर, कर रहे हैं आकलन रिसाव पर, टूटता है बाँध कैसे सब्र का, करे निर्भर धार के कटाव पर, जलस्तर बढ़ने लगा उन्माद का, कोई मरहम लगाये इस घाव पर, कुटिल शकुनी से पराजित हो गए, द्रौपदी को लगा पाण्डव दाव पर, हार के अंजाम से अवगत किशन, भीष्म से मिलने गए बचाव पर, महाभारत में गँवा बैठे सकल, हुए जो राजी न पाँच गाँव पर, कैसे दरिया पार कर पायेंगे वे, खड़े हैं जो पाँव रख दो नाव पर, प्रेम और विश्वास से गुंजन पुकारो, रीझते हैं प्रभु हृदय के भाव पर, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #टूटता है बाँध कैसे सब्र का#