प्रेम में विश्वास ढूँढने निकले, अजनबी में खास ढूँढने निकले, मधुर आवाज में था जादू ऐसा, अपने आसपास ढूँढने निकले, मोगरे की महक साँसों में घुली, बेर में अमलतास ढूँढने निकले, अंधेरा और घुटन से घबराकर, इर्द-गिर्द उजास ढूँढने निकले, समझ सके जो मेरी ख़ामुशी को, अपने जैसा उदास ढूँढने निकले, सफर कट जाए खेल-खेल में ही, कुछ मुसाफ़िर ताश ढूँढने निकले, गुज़र चुका है अब तो कारवाँ भी, कोई हमें भी काश!ढूँढने निकले, अपनी तन्हाई के डर से 'गुंजन', लोग गले का फाँस ढूँढने निकले, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #ढूँढने निकले#