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आसमां में चांद धरा के इस जहां में फैली है दीयों

आसमां में चांद



धरा के इस जहां में फैली है दीयों की रौशनी,
आसमां के उस शमां में वो चांद आज गुमनाम है,
खोया है या बहका है, या कहीं पे अटका है,
पूछ ले ए आसमां, तू भी आज विरान है,
आसमां के उस शमां में वो चांद आज गुमनाम है ।

एक एक दीया, हर द्वार पर, संजो रही है आस को,
चल संजो ले, हम भी अपने मन के आस विश्वास को,
मत खो डगर, ये तेरा सफर, है तन्हा मगर, क्या करें,
चल जरा उस आसमां संग ये दिल का हाल बयां करें, 
पूछे जरा इस धरा की रौशनी से, आसमां में कैसा शाम है,
आसमां के उस शमां में वो चांद आज गुमनाम है ।

(आसमां का जवाब)....
है यकीं वो याद करता, मिलने को मुझसे फरियाद करता,
पर वक्त की है बंदिशें, ये दिल भी संयम है बांधता,
सुनो,आज इन सितारों के संग जगमग हुआ है मेरा शमां,
इसमें मिली है साथी उस चांद के यादों की निशां,
मुझमें शामिल है वो, फिर बता, कैसे चांद मेरा गुमनाम है ?


धरती...
यकीनन तुझमें रौशनी, आज इस धरा से खुब है,
क्योंकि जलता बस तेरा सितारा नहीं, जल रहा तुझमें तेरा मेहबूब है,
प्रेम की एक कहानी आज तूने समझाई,
 वनवास तो सच में उर्मिला लक्ष्मण ने है पाई,
प्रेम मिलन से, प्रेम विरह तक, ये प्रेम सफर अभिमान है,
आसमां के उस शमां में वो चांद आज गुमनाम है  ।

©Yadon Ka Safar ( Kumari Samagi)
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