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मैं उस घड़ी के इंतजार में हूँ!ओ! प्रकृति! जिस घड़ी त

मैं उस घड़ी के इंतजार में हूँ!ओ! प्रकृति!
जिस घड़ी तू हर शख्स को
अपनी आगोश में समेट लेगी!!

फिर न कोई धर्म होगा 
फिर न कोई जाति होगी
इक शुकुन भरा मंज़र और
तब इक नया सवेरा होगा!!

फिर करना तू श्रृंगार नया, मग़र!
मानव को खुद का हिस्सा, न बनाना
नहीं तो तुझे ही तुझसे रुसवा
ये इंसानियत फिर से कर देगी!!

मैं उस घड़ी के इंतजार में हूँ!ओ! प्रकृति!
जिस घड़ी तू हर शख्स को
अपनी आगोश में समेट लेगी!!

©Deepak "Love of Life"
  #तड़प ए प्रकृति

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