Black इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ, 👌 साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ? मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना। पहले ज़मीं बँटी फिर घर भी बँट गया, इंसान अपने-आप में कितना सिमट गया। आइना कोई ऐसा बना दे, ऐ खुदा, जो इंसान का चेहरा नहीं किरदार दिखा दे। हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना कई बार देखना। ©Kushal - कुशल #Thinking