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बहुत याद आते हैं सूनी दोपहरी, दरख्तों के साये वो

 बहुत याद आते हैं सूनी दोपहरी, दरख्तों के साये 
वो उजला सा चेहरा, ओढ़नी सुनहरी,जिधर से तू आए

वो शर्म-ओ-हया, वो पहली मर्तबा, वो नीची निगाहें 
बहुत याद आते हैं वो मेरा सिरहना,सनम तेरी बांहें

©KUMAR MANI(#KM_Poetry)
  dopahri