जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त ,
हम क्यों फिक्र करे जमाने की , जब वो यही नहीं समझ पाए कि तुम तो हो मेरी इबादत ,
ना आदत ,ना नशा , ना खुमारी , तुम तो रब हो हमारी ,
तुम कहो तो मुस्कुरा दूँ , तुम्हारे एक इशारे पर अपनी जान वार दूँ ,
मुझे नहीं समझ आती यह जमाने की दुनियादारी ,
क्यों करूँ फिक्र जमाने की , यह बात-बात पर सवाल करता है, उँगली उठाता है खुदा से पाक इस अहसास पर,
जब तुम्हारी हाँ है और मैंने कर ली है सँग जीने-मरने की तैयारी ,
जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त , #Poetry#Hindi#poem#kavita