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जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त , हम क्यों

जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त  ,
हम क्यों फिक्र करे जमाने की , जब वो यही नहीं समझ पाए कि तुम तो हो मेरी इबादत ,
ना आदत ,ना नशा , ना खुमारी , तुम तो रब हो हमारी ,
तुम कहो तो मुस्कुरा दूँ , तुम्हारे एक इशारे पर अपनी जान वार दूँ ,
मुझे नहीं समझ आती यह जमाने की दुनियादारी ,
क्यों करूँ फिक्र जमाने की , यह बात-बात पर सवाल करता है, उँगली उठाता है खुदा से पाक इस अहसास पर,
जब तुम्हारी हाँ है और मैंने कर ली है सँग जीने-मरने की तैयारी ,
जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त ,
क्यों फिक्र करूँ मैं जमाने की ,
 अब तुम ही हो मेरी मोहब्बत ,तुमसे ही है मेरी दुनिया और तुमसे ही यारी ।।

©Sakshi Soni
  जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त  ,
हम क्यों फिक्र करे जमाने की , जब वो यही नहीं समझ पाए कि तुम तो हो मेरी इबादत ,
ना आदत ,ना नशा , ना खुमारी , तुम तो रब हो हमारी ,
तुम कहो तो मुस्कुरा दूँ , तुम्हारे एक इशारे पर अपनी जान वार दूँ ,
मुझे नहीं समझ आती यह जमाने की दुनियादारी ,
क्यों करूँ फिक्र जमाने की , यह बात-बात पर सवाल करता है, उँगली उठाता है खुदा से पाक इस अहसास पर,
जब तुम्हारी हाँ है और मैंने कर ली है सँग जीने-मरने की तैयारी ,
जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त ,
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Sakshi

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जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त , हम क्यों फिक्र करे जमाने की , जब वो यही नहीं समझ पाए कि तुम तो हो मेरी इबादत , ना आदत ,ना नशा , ना खुमारी , तुम तो रब हो हमारी , तुम कहो तो मुस्कुरा दूँ , तुम्हारे एक इशारे पर अपनी जान वार दूँ , मुझे नहीं समझ आती यह जमाने की दुनियादारी , क्यों करूँ फिक्र जमाने की , यह बात-बात पर सवाल करता है, उँगली उठाता है खुदा से पाक इस अहसास पर, जब तुम्हारी हाँ है और मैंने कर ली है सँग जीने-मरने की तैयारी , जमाने को मंजूर नहीं है हमारी मोहब्ब्त , #Poetry #Hindi #poem #kavita

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