1222 1222 1222 1222 चमन वीरान है दिल का , मिरे तुम आके महकाना तरसती है निगाहें दीद को तुम आके दे जाना लगी है यूँ नज़र मेरी मुहब्बत पर ज़माने की मुझे कहते है दुनियाँ मैं में हूँ खुद से ही बैगाना तिरी चाहत में फिरता हूँ जहाँ की ठोकरें खाकर कहाँ तक ठोकरें हम खायें अब आकर ये समझाना गुजारूँ कैसे मैं ये ज़िन्दगी बिन तेरे तन्हा अब तरीका जीने का हमको कभी आकर ये बतलाना बहा कर आँसु तुमने भी कही थी बात ये हमको जमाना चाहे ठुकराये मगर तुम ना यूँ ठुकराना तड़फती रूह को तुम और तड़फाओ न जाने जां तिरे कदमो में ही है आज भी तेरा ये परवाना ( लक्ष्मण दावानी ✍ ) 18/1/2017 ©laxman dawani #Lights #Love #Life #romance #Poetry #gazal #experience #poem #Poet #Knowledge