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मसअला सिर्फ़ जीने का रह गया ज़िंदगी का कोई मक़सद

मसअला सिर्फ़ जीने का रह गया
 ज़िंदगी का कोई मक़सद कहाँ रहा

हर नए दौर की ये आदत रही
 कोई गिरता रहा, कोई चलता रहा

अब तो मज़हब भी तिजारत बन गया 
क़ौल बदला गया, दाम बढ़ता रहा

नाम मुफ़लिस का लिया सब ने 'नवनीत' 
पर फ़क़ीरों का चूल्हा भी जलता रहा

अब सियासत भी नफ़ासत से खेलती है 
सिर्फ़ चेहरा बदलता रहा, हाल रहता रहा

सच की महफ़िल में हमने ये देखा 
जो भी बोला, वो ख़तरे में रहता रहा

जिसको चाहा था हमने दुआओं में
 कल आज वही हाथ झटकता रहा

हमने सोचा कि मिट्टी का दिल होगा
 पर पत्थरों सा कोई टूटता रहा

इस तमाशे में शामिल सभी थे
 मगर हर कोई ख़ुद को बचाता रहा

 जो भी सच्चा था, वो तनहा रह गया
 झूठ वालों का सिक्का ही चलता रहा

इश्क़ वालों ने की थी इबादत 
मगर उनका सज्दा सरे-राह बिकता रहा

हमने हर मोड़ पे देखी हैं चालें नई 
शह भी मिलती रही, खेल चलता रहा

'नवनीत' इस दौर में सच बोल कर 
हम भी सोचें कि क्यूँ कर फँसता रहा

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर
मसअला सिर्फ़ जीने का रह गया
 ज़िंदगी का कोई मक़सद कहाँ रहा

हर नए दौर की ये आदत रही
 कोई गिरता रहा, कोई चलता रहा

अब तो मज़हब भी तिजारत बन गया 
क़ौल बदला गया, दाम बढ़ता रहा

नाम मुफ़लिस का लिया सब ने 'नवनीत' 
पर फ़क़ीरों का चूल्हा भी जलता रहा

अब सियासत भी नफ़ासत से खेलती है 
सिर्फ़ चेहरा बदलता रहा, हाल रहता रहा

सच की महफ़िल में हमने ये देखा 
जो भी बोला, वो ख़तरे में रहता रहा

जिसको चाहा था हमने दुआओं में
 कल आज वही हाथ झटकता रहा

हमने सोचा कि मिट्टी का दिल होगा
 पर पत्थरों सा कोई टूटता रहा

इस तमाशे में शामिल सभी थे
 मगर हर कोई ख़ुद को बचाता रहा

 जो भी सच्चा था, वो तनहा रह गया
 झूठ वालों का सिक्का ही चलता रहा

इश्क़ वालों ने की थी इबादत 
मगर उनका सज्दा सरे-राह बिकता रहा

हमने हर मोड़ पे देखी हैं चालें नई 
शह भी मिलती रही, खेल चलता रहा

'नवनीत' इस दौर में सच बोल कर 
हम भी सोचें कि क्यूँ कर फँसता रहा

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर