आज कल जो भी मिलता है मुझसे, में बदल गई हूं ये शिकायत करता है मुझसे। मेरे तकिये को मुझसे शिकायत है, आज कल दिल खोल के बात नहीं करती उससे, ना खुशी मे उसको गले लगाती हूं, ना गम के आंसुओ से भीगाती हूं उसको, आज कल जो भी मिलता है मुझसे, में बदल गई हूं ये शिकायत करता है मुझसे। मेरे आईने को मुझसे शिकायत है, आज कल सच नहीं बोलती उससे, पहले झूठी हसी भी बता देती थी, आज कल सच्चा ग़म भी छुपा लेती हूं उससे, आज कल जो भी मिलता है मुझसे, में बदल गई हूं ये शिकायत करता है मुझसे। मेरी डायरी को मुझसे शिकायत है, आज कल हाल चाल नहीं बताती उसे, पहले खोल के उसे जी भर के रो लिया करती थी, आज महीनों बीत गए खोले उसे, आज कल जो भी मिलता है मुझसे, में बदल गई हूं ये शिकायत करता है मुझसे। - हर्षिता... Shikayat... #poem #shayri #dilkibaat