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* #अब_कभी_ऐसा_ना_हो जो अभी अंतस जला वो आग का शोला

* #अब_कभी_ऐसा_ना_हो

जो अभी अंतस जला वो आग का शोला गिराये।
इसलिए श्रृंगार गाथा ,हम अधूरी छोड़ आए 
अब हमें लिखना पड़ेगा,सत्य कड़वा इस कलम से।
अब नहीं आंगन  चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं।

वहशी, दरिंदा क्यों बना ,क्या परवरिश में की कमी?,
नकेल कस क्यों नहीं रखे?, क्यों मोह में थे हम भ्रमी।
पुत्र या पुत्री सभी सम, सबमें मर्यादा तो हो-
लाडला कुलदीप कह के ,माथे बिठाये थे हमीं।।

कुल कलंकित न करे, मनुजता उसको सिखाएं ।
अब नहीं आंगन चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं।

आंख गीली भारती की ,आज खुद से देश रूठा,
चुड़ियों के संग बेटी, शस्त्र तू हाथों उठा।
कुछ लुटेरों ने जो लूटा, कानुनों में क्यों कमी है-
कुछ विभत्सी कामियों ने,देश की बेटी को लूटा।।

संस्कारों संग बेटी , तू है शक्ति ये बताएं।
अब नहीं आंगन चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं।

हाथ मेहंदी पग महावर, रौद्रता भी रख छिपाए।
रह सजग धर रुप चंडी,कोई तुझको छू ना पाए।
विजय परिभाषा लिखो तुम, वहशियों के खून से अब-
रानी दुर्गा, लक्ष्मी बन,कोई दुश्मन बच ना पाए।।

तुम भी हो इनकी ही वंशज, बेटियों को ये बताएं।।
अब नहीं आंगन चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं ‌

मां! की है इक जो दुलारी ,आज पैरों में खड़ी है,
पिता के अभिमान की ही, दुर्दशा इतनी बड़ी है।
मां भारती की गर्विता , खुद चाहतों की मालकिन -
तंत्र की सुस्ती ने निगला , व्यवस्था ढीली पड़ी है ।।

और बेटी अब न लूटे,अब बड़ा बदलाव लाएं।
अब नहीं आंगन चिरैया शेरनी बेटी बनाएं।

परवरिश में ख़ून का क़तरा अँगारा सा बनाए,
दांव कुत्सित से बचाने ,कृष्ण भी अब तो न आए।
आंख पट्टी शासकों की,दर्द बेटी की बनी है-
कलम हुंकारो भरी से देश को हम मिल जगाए। ।

कर्म समझे धर्म समझे,न्याय में बदलाव लाएं
अब नहीं आंगन चिरैया शेरनी बेटी बनाएं।

आंख आंसू पोंछ अब, हर कुनीति का हो उजागर,
आज भी लिपटे हुए हैं,राष्ट्र आजादी में विषधर।
राजनीति इस पर जो हो निंदापरक यह बात है-
जो विषैला फन उठे तो ,कुचल दो उसको वहीं पर।।

गिन गिन सजा उसको मिले , फिर तड़पती मौत पाएं।
अब नहीं आंगन चिरैया शेरनी बेटी बनाएं 

वीणा खंडेलवाल 
 तुमसर महाराष्ट्र

©veena khandelwal #World_Photography_Day
* #अब_कभी_ऐसा_ना_हो

जो अभी अंतस जला वो आग का शोला गिराये।
इसलिए श्रृंगार गाथा ,हम अधूरी छोड़ आए 
अब हमें लिखना पड़ेगा,सत्य कड़वा इस कलम से।
अब नहीं आंगन  चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं।

वहशी, दरिंदा क्यों बना ,क्या परवरिश में की कमी?,
नकेल कस क्यों नहीं रखे?, क्यों मोह में थे हम भ्रमी।
पुत्र या पुत्री सभी सम, सबमें मर्यादा तो हो-
लाडला कुलदीप कह के ,माथे बिठाये थे हमीं।।

कुल कलंकित न करे, मनुजता उसको सिखाएं ।
अब नहीं आंगन चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं।

आंख गीली भारती की ,आज खुद से देश रूठा,
चुड़ियों के संग बेटी, शस्त्र तू हाथों उठा।
कुछ लुटेरों ने जो लूटा, कानुनों में क्यों कमी है-
कुछ विभत्सी कामियों ने,देश की बेटी को लूटा।।

संस्कारों संग बेटी , तू है शक्ति ये बताएं।
अब नहीं आंगन चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं।

हाथ मेहंदी पग महावर, रौद्रता भी रख छिपाए।
रह सजग धर रुप चंडी,कोई तुझको छू ना पाए।
विजय परिभाषा लिखो तुम, वहशियों के खून से अब-
रानी दुर्गा, लक्ष्मी बन,कोई दुश्मन बच ना पाए।।

तुम भी हो इनकी ही वंशज, बेटियों को ये बताएं।।
अब नहीं आंगन चिरैया, शेरनी बेटी बनाएं ‌

मां! की है इक जो दुलारी ,आज पैरों में खड़ी है,
पिता के अभिमान की ही, दुर्दशा इतनी बड़ी है।
मां भारती की गर्विता , खुद चाहतों की मालकिन -
तंत्र की सुस्ती ने निगला , व्यवस्था ढीली पड़ी है ।।

और बेटी अब न लूटे,अब बड़ा बदलाव लाएं।
अब नहीं आंगन चिरैया शेरनी बेटी बनाएं।

परवरिश में ख़ून का क़तरा अँगारा सा बनाए,
दांव कुत्सित से बचाने ,कृष्ण भी अब तो न आए।
आंख पट्टी शासकों की,दर्द बेटी की बनी है-
कलम हुंकारो भरी से देश को हम मिल जगाए। ।

कर्म समझे धर्म समझे,न्याय में बदलाव लाएं
अब नहीं आंगन चिरैया शेरनी बेटी बनाएं।

आंख आंसू पोंछ अब, हर कुनीति का हो उजागर,
आज भी लिपटे हुए हैं,राष्ट्र आजादी में विषधर।
राजनीति इस पर जो हो निंदापरक यह बात है-
जो विषैला फन उठे तो ,कुचल दो उसको वहीं पर।।

गिन गिन सजा उसको मिले , फिर तड़पती मौत पाएं।
अब नहीं आंगन चिरैया शेरनी बेटी बनाएं 

वीणा खंडेलवाल 
 तुमसर महाराष्ट्र

©veena khandelwal #World_Photography_Day