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कहने को तो कह दूँ जो ज़हन में है प उठ बैठेगें वो भ

कहने को तो कह दूँ जो ज़हन में है 
प उठ बैठेगें वो भी जो कफ़न में है 
साँसों का हिसाब दो कितनी साँसें लीं
पूछ लो मालिक जो आपके मन में है 

बस दो - चार ही तो काम है जहां में मेरे , 
चार दिन की चांदनी फिर अँधेरा फ़न में है 
सबको ज़रूरत की रोटी है मिल जाती
इसकी बुराई उसकी बुराई सब फैशन में है 

लोग जानतें हैं के मरना है सबको इक दिन
मरते हुए जीते हैं जैसे सारा मज़ा धन में है 
छुट्टी पे भी करवाओगे काम अब तुम हमसे
सिर्फ फायदा उठाना ही तो तेरे प्रयोजन में है । 

गुलाम और गुलामी कहाँ ख़त्म हुई यारों
ग़ौर से देख लो आस-पास जन-जन में है  
शिरीन कर के भी देखा अपनी ज़ुबाँ को हमनें
पर इन ऊचों को लगता ,के सब कुछ उन में है  

राम थोड़ी देर तो रोक लो इस भले यमदूत को
देखो चरणामृत अभी सतिन्दर के आचमन में है 

©️✍️ सतिन्दर कहने को तो कह दूँ जो ज़हन में है 
प उठ बैठेगें वो भी जो कफ़न में है 

साँसों का हिसाब दो कितनी साँसें लीं
पूछ लो मालिक जो आपके मन में है 

बस दो - चार ही तो काम है जहां में मेरे , 
चार दिन की चांदनी फिर अँधेरा फ़न में है
कहने को तो कह दूँ जो ज़हन में है 
प उठ बैठेगें वो भी जो कफ़न में है 
साँसों का हिसाब दो कितनी साँसें लीं
पूछ लो मालिक जो आपके मन में है 

बस दो - चार ही तो काम है जहां में मेरे , 
चार दिन की चांदनी फिर अँधेरा फ़न में है 
सबको ज़रूरत की रोटी है मिल जाती
इसकी बुराई उसकी बुराई सब फैशन में है 

लोग जानतें हैं के मरना है सबको इक दिन
मरते हुए जीते हैं जैसे सारा मज़ा धन में है 
छुट्टी पे भी करवाओगे काम अब तुम हमसे
सिर्फ फायदा उठाना ही तो तेरे प्रयोजन में है । 

गुलाम और गुलामी कहाँ ख़त्म हुई यारों
ग़ौर से देख लो आस-पास जन-जन में है  
शिरीन कर के भी देखा अपनी ज़ुबाँ को हमनें
पर इन ऊचों को लगता ,के सब कुछ उन में है  

राम थोड़ी देर तो रोक लो इस भले यमदूत को
देखो चरणामृत अभी सतिन्दर के आचमन में है 

©️✍️ सतिन्दर कहने को तो कह दूँ जो ज़हन में है 
प उठ बैठेगें वो भी जो कफ़न में है 

साँसों का हिसाब दो कितनी साँसें लीं
पूछ लो मालिक जो आपके मन में है 

बस दो - चार ही तो काम है जहां में मेरे , 
चार दिन की चांदनी फिर अँधेरा फ़न में है

कहने को तो कह दूँ जो ज़हन में है प उठ बैठेगें वो भी जो कफ़न में है साँसों का हिसाब दो कितनी साँसें लीं पूछ लो मालिक जो आपके मन में है बस दो - चार ही तो काम है जहां में मेरे , चार दिन की चांदनी फिर अँधेरा फ़न में है #Poetry #नज़्म #गज़ल #सतिन्दर #shyari #satinder #gazhal #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #रेख़्ता