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तेरी आँखो के सिवा मैं युँ भी कहीं मिलती नहीं , फिर

तेरी आँखो के सिवा मैं युँ भी कहीं मिलती नहीं ,
फिर भी तु इन किताबो के भरोसे मुझे छोड़े जा रहा हैँ ,
मैं जानती हुँ तु जानता है ,
मैं हर अक्षर , हर शब्द , हर वाक्य , कहीं भी गुम हो जाती हुँ ,
फिर भी तु अपनी आँखे मिचे जा रहा है ...
ये लहरे न जाने कितनी कागज की कस्तियां खा गई ,
मेरे हाथो में बस एक कलम की पतवार है ,
तुम्हे तो बस मेरे हाथो पर अपना हाथ प्यार से रखना था ,
और तु है की अपना हाथ आहिस्ते आहिस्ते  से खिंचे जा रहा हैं ...

©Monika Suman
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