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जीवन दर्पण की छाया है ये झूठ है या फिर सच. ये

जीवन  दर्पण की छाया  है 
ये  झूठ है या फिर सच. ये तो पता नहीं 
लेकिन ये तो सर्वसिद्ध  है क़ि 
इस जीवन ने  तुष्टि. को कहाँ पाया  है 

ताउम्र ये डोलता रहता है  राग और विराग 
क़े झूले मे कभी इधर कभी उधर 
कभी  आरोह कभी  अवरोह  की रागो मे
फिर भी  कोई राग इसे कहाँ  भाया  है 

तन  कहे j  चला जाता है  'मै '  ही हूँ  पर ज्ञान  ने 
इसे क्षणभंगुरता 
का पाठ   पढ़ाया है l
शाश्वत  से  जुड़ने का  ज़ब भी  इसने प्रयास 
किया 
मोह  आसक्ति  ने   इसे  बंधक   बनाया   है

©Parasram Arora #जीवन दर्पण......
जीवन  दर्पण की छाया  है 
ये  झूठ है या फिर सच. ये तो पता नहीं 
लेकिन ये तो सर्वसिद्ध  है क़ि 
इस जीवन ने  तुष्टि. को कहाँ पाया  है 

ताउम्र ये डोलता रहता है  राग और विराग 
क़े झूले मे कभी इधर कभी उधर 
कभी  आरोह कभी  अवरोह  की रागो मे
फिर भी  कोई राग इसे कहाँ  भाया  है 

तन  कहे j  चला जाता है  'मै '  ही हूँ  पर ज्ञान  ने 
इसे क्षणभंगुरता 
का पाठ   पढ़ाया है l
शाश्वत  से  जुड़ने का  ज़ब भी  इसने प्रयास 
किया 
मोह  आसक्ति  ने   इसे  बंधक   बनाया   है

©Parasram Arora #जीवन दर्पण......

#जीवन दर्पण......