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मैं स्त्री हूँ!! मेरे सब्र का पैमाना अब छलकने लगा

मैं स्त्री हूँ!! मेरे सब्र का पैमाना अब छलकने लगा 
मेरा कुछ कहना,अब सबको अखरने लगा 
माँ की कोख से ही,जाँची परखी गयी
घर की लाज है,बस इसलिए ढकी गयी 
डोली में जाना अर्थी में आना,ऐसी शर्तें रखी गयी 
पीहर से ससुराल तक,हर रोज बस चखी गयी 
मेरा अस्तित्व,मेरी नजरों में प्रश्नचिन्ह बनने लगा 
मेरा कुछ कहना,अब सबको अखरने लगा 
जन्म से मृत्यु,कर दिया औरों के हवाले 
फिर भी किसी को,दिखे न मन के छाले 
न हो शांति भंग कहीं,मन के हर भाव दबा डाले 
फिर भी सभी जगह,बस बनते गए जाले 
मन अपनी ही,दुर्बलताओं से भरने लगा 
मेरा कुछ कहना,अब सबको अखरने लगा 
उम्मीदों और जिम्मेदारियों के,बोझ तले 
मेरे सारे सपने,खाक हो चले 
काश,,!कोई मेरे लिए भी पिघले 
क्यों मेरी ख़ामोशी,किसी को न खले 
अब बस सबसे मन भरने लगा 
मेरा कुछ कहना,अब सबको अखरने लगा 
हर सीख ,बस मुझे सिखाई 
ज्ञान गंगा,सिर्फ मेरे लिए बहाई 
स्त्री हो!चुप रहो न दो दुहाई 
रहो मर्यादित!न करो जगहंसाई 
अब मन का शोला भड़कने लगा 
मेरा कुछ कहना,अब सबको अखरने लगा
स्त्री होने से पहले,हूँ एक इंसान 
हर प्राणी की तरह,मुझमे भी है जान 
नहीं बनना,सिर्फ मुझे गुणों की खान
मेरी भी है कुछ,अपनी"आन बान शान"
'मैं स्त्री हूँ!!मेरे सब्र का पैमाना अब छलकने लगा" 
मेरा मन भी,मनचाही उड़ान भरने लगा 
मेरा कुछ कहना,अब सबको अखरने लगा!!!!!!
         
          
          सारिका जोशी नौटियाल"सारा"

©Sarika Joshi Nautiyal
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