आज भी निरह बेचारी भटकती है वजूद की तलब को मारी मारी, हर रिश्ते में,हर जिम्मेदारी में पूर्ण है कहते हैं उसे किस्मत की मारी, निजहित को न सोचा,फिर भी नहीं पाती सम्मान वो अबला नारी, सर्वगुणसम्पन्न-सर्वश्रेष्ठ रचना है खुद पर ज़माने की कुव्यवस्था से हारी जब आती है वह अपने असली रौद्र रूप में पड़ती हैं फिर वो सब पर भारी अपने वजूद तो क्या,खुद बन सती दे अग्निपरीक्षा खुद सृष्टि हारी, करो सम्मान इस अनुपम अतुलनीय कृति की जगजननी है ये नारी, बिन इसके तो अकल्पनीय है सहस्र संसार सब गाते हैं महिमा तुम्हारी। ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌷"वज़ूद की तलब" 🌷 Meaning : Summon of existence 🌟 पहले सावधानी पूर्वक "CAPTION" पढ़ें और दिए हुए शब्द को ध्यान में रखते हुए अपने ख़ूबसूरत शब्दों एवं भावों के साथ अपने एहसास कहें।