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#स्पर्श अस्थिर और अस्तित्वहीन इस मन में लाए स्थि


#स्पर्श 
अस्थिर और अस्तित्वहीन इस मन में
लाए स्थिरता
विजनता के अंधकार में
जलाए आशा के दीये
मृत्युमुखी जीवन को
सिखलाए ईश्वरत्व..
पलकों के अनावश्यक आंसुओं से
खिलखिलाने लगे कवित्व..
सिर्फ दो उंगलियों के स्पर्श से...
अभी तो व्याकुलित प्रार्थना में भी
प्रतिफलित स्पर्श के अप्रकाश्य अनुभव को...
शब्दहीन गोपनीय भाषा
यह स्थविर शरीर भी भीग रहा है
रक्ताभ गुलमोहर के उच्चारित
लालिमा में...
हमारे निसर्त प्रेम में
स्पर्श ही तो अदृश्य चुक्तिनामा
जिसके मुग्थ महक में भीगकर
हम बनाएंगे अंतहीन अनुभव के
महार्घ मुहूर्त सारे...
जिसमें हो केवल
सुरभित, सुगंधित, सुसज्जित, समर्पित
अतुल्य,अंतरंग,अनुपम,अनुठा,और
अदृश्य स्पर्श सारे...

©Sandhya
  #lonelynight