White अनछुआ एहसास पल पल, हो रहे आघात पल पल। स्वप्न में उलझे हुऐ मन, हल नहीं तुम पा सकोगे। अब कहाँ तुम जा सकोगे। रोज इक सूरज उगा कर, कब तलक मैं धूप डालू। ढल रहे इस रुप को अब, निष्प्रयोजन क्यूँ निहारू। सूखती इस झील में तुम, अब कँवल ना पा सकोगे। पर ना वापस जा सकोगे। एक सावन के भरोसे, कितने पतझड़ आ चुके हैं। चहचहाते घोसलों से, सारे बच्चे जा चुके हैं। फिर घटाऐ घिर भी जाऐ, मेरा सावन ला सकोगे। फिर मुझे क्या पा सकोगे। फिर मुझे क्या पा.........। ©Manish ghazipuri #love_shayari शायरी मोटिवेशनल मोटिवेशनल कविता इन हिंदी Sushant Singh Rajput