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हवा भी कहीं गुम है , जमाने की हवाओं में, मैं तो

हवा भी कहीं गुम है ,

जमाने की हवाओं में,


मैं तो उसको 

ढूढं रहा,

कुछ अनजानी राहों में,

जब भी मैं देखूँ 
उसको

तो पाता हूँ ,

इक तरुवर की  ठंडी छाव मैं,


क्योंकि कि

वो रहती है,

अब उसकी मद  मस्त निगाहों में ।

©SHIVAM TOMAR #निगाह,
हवा भी कहीं गुम है ,

जमाने की हवाओं में,


मैं तो उसको 

ढूढं रहा,

कुछ अनजानी राहों में,

जब भी मैं देखूँ 
उसको

तो पाता हूँ ,

इक तरुवर की  ठंडी छाव मैं,


क्योंकि कि

वो रहती है,

अब उसकी मद  मस्त निगाहों में ।

©SHIVAM TOMAR #निगाह,