" कब वो चांद मेरे पहलू में हों , उसके के बेरुखी नजर अंदाज को समझा जा सके , इस जद में वो भी कुछ गुमसुम गुमनाम हैं , बात तहरीर पे है जाने कब तक फिर ख्याल मुकम्मल हो ." उसके जिक्र की खामोशी पूरजोर है , उसने अभी तक कोई इरादे का संदेश दिया नहीं ." --- रबिन्द्र राम Pic : pexels.com " कब वो चांद मेरे पहलू में हों , उसके के बेरुखी नजर अंदाज को समझा जा सके , इस जद में वो भी कुछ गुमसुम गुमनाम हैं , बात तहरीर पे है जाने कब तक फिर ख्याल मुकम्मल हो ." उसके जिक्र की खामोशी पूरजोर है , उसने अभी तक कोई इरादे का संदेश दिया नहीं ."