सुकून खो जाने के बाद , ख़ुद के अकेले हो जाने के बाद , अक्सर इंसान वो कर बैठता है जिससे उसके साथ साथ उसके करीबी लोगो की ज़िंदगी भी बिखर जाती है , मगर ये सब होने से पहले कुछ पल ऐसे होते हैं , जब इंसान की समझ काम तो करती है मगर उस वक्त कोई सही रास्ता दिखाने वाला हो तो ज़िंदगी संवर सकती है , मैने बिखरने से पहले अपनी जिंदगी का वो वक्त खुद को बर्बाद करने में लगा दिया और ऐसा नहीं था मुझे समझाने वाले या समझने वाले नहीं थे बहुत लोग थे मगर मैंने अपनी मर्ज़ी से ही ख़ुद को टूट कर बिखर जाने दिया मैं किसीको इल्जाम नहीं देना चाहता मगर मेरी बर्बादी का मैं खुद जिम्मेदार हूं मैं जानता था मेरी बर्बादी ही मुझे उस शख्स से मिलवा रही है मैं फिर भी उसके पीछे गया, यहां तक मैं अपने बनाए सिद्धांत को दरकिनार कर दिया की लड़की और नशा इंसान को आसमान से ज़मीन पर गिरा देता है
गोपाल_पंडित
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