आज फिर वृक्ष की शाखों ने, सभा रखी थी | जमा हुई सारी ही फूल पत्ती थी | सब परेशान हैं, जड़ के मोटापे से | सबने मिलके निकला है, निष्कर्ष | अपने दुबले पतले होने का | के खा जाती है सारा लवण, पी जाती है सारा पोषण , नीचे बैठे बैठे | उम्र हो गई पर, मुई जड़ मरती भी नही | और सब चुपचाप सुनती रही, अपने वृद्ध कांधो पर सबका बोझ लिए | उसे मालूम था उसका क्रोध, सुखा देगी उसकी ही ममता को | और फिर चलता रहा ये सिलसिला , अनवरत| अंनंत काल तक | दोषी ठहरा दिया जड़ को, उसकी शाखाओ ने | और फिर झूमने लगे सब, मस्त हवा के संग | किसी को क्या , जड़ के दिल पे क्या बीती || निर्भय कुमार सिंह #AAWAAZ #कविता #विचार #जड़