दीपक हाँ, मैं दीपक हूँ। निरन्तर जलता हूँ, मन्दिर और घर की तुलसी चौरा में। सदा से मैं,आस का प्रतीक, शुभता का सूचक। हाँ,मैं दीपक हूँ.... माटी, तेल और बाती समीर,अनल मेरे साथी, इनके बिना अस्तित्व नही। फिर भी जुड़ता हूँ, मन की सकारात्मक पहलू से। हाँ, मैं दीपक हूँ। मेरे तले तमस,चहुँ ओर प्रकाश तेजपुंज,ज्ञान की आराधना। आराध्य के निकट, मनुज पाता सुख और चैन। हाँ, मैं दीपक हूँ। बढ़ता जाता हूँ,लौ के साथ अंतहीन क्रिया,मेरे अनुप्रयोग। सुखदुःख का साक्षी, बताते अपनी मनोवेदना। हाँ मैं दीपक हूँ। करते दीपदान मेरा, बढ़ता समृध्दि वैभव सारा। दरिद्रता कटुता हो फिर भी, जोत मेरी जलाता पाता अक्षय अपार आनन्द। हाँ, मैं दीपक हूँ। समाया हूँ अंधकार में, पाता हूँ ज्ञान ग्रन्थों में। प्रश्न यही कौन ढूंढे मुझे, मन के नैन सब है पहचाने।। हाँ, मैं दीपक हूँ। हाँ,मैं दीपक हूँ।। ©Sunil lambadi हैप्पी दीवाली #Diya