#happy_father's_day न जाने कितने सूरज की आग में तपे हैं कितने समुद्र की गहराई सा धैर्य धरे हैं मेरे सपनों से पिता के कितने सपने ढहे हैं सबका दुःख धारण कर पिता पिता बने हैं कितनी सर्द रातें खेतों में सोए हैं कितने खलिहान पीठ पर ढोए हैं चटटानो से लड़कर भी ना टूटे हैं कितने बीज धरा चीर कर बोए हैं सब कंगूरे बने लेकिन वो खुद नींव बने हैं सबका दुःख धारण कर पिता पिता बने हैं मैं कागज हूँ पिता एक कलम हैं मैं एक दर्द हूँ पिता एक मरहम हैं मैं अंधेरा हूँ पिता एक दीपक हैं मैं शिक्षा हूँ पिता एक संस्कार हैं कितने आँसू आंखों में रह सैलाब बने हैं सबके दुःख धारण कर पिता पिता बने हैं ©Deshraj Gurjar #HappyFathersDay #foryoupapa