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तुम कहती हो कभी मैं उथला हूँ. कभी मैं गहरा हूँ प

तुम कहती हो
कभी  मैं उथला हूँ. कभी मैं गहरा हूँ 
प्यार को समझ नही पाता हूँ
तुम कहती हो कभी मैं सहज  कभी मैं असहज हूँ.
प्रीत  के प्रतिको को समझ नही पाता हूँ
शरद की भोर हैँ
और मैं पसीने से भीगा हूँ
तुम कहती हो
कभी मै वज्र हूँ कभी मैं तरल हो जाता हूँ
और ये मज़े की बात हैँ क़ि  ये सब मैं  कितने  प्यार से  स्वीकार भी
कर लेता हूँ.
इसके बावजूद  भीअगर तुम मुझे दोष देती रहोगी
तों मुझे  कहने मे कोई संकोच भी नही हैँ क़ि
मैं   शुरू से ही विवादास्पद . हूँ

©Parasram Arora विवादस्पद
तुम कहती हो
कभी  मैं उथला हूँ. कभी मैं गहरा हूँ 
प्यार को समझ नही पाता हूँ
तुम कहती हो कभी मैं सहज  कभी मैं असहज हूँ.
प्रीत  के प्रतिको को समझ नही पाता हूँ
शरद की भोर हैँ
और मैं पसीने से भीगा हूँ
तुम कहती हो
कभी मै वज्र हूँ कभी मैं तरल हो जाता हूँ
और ये मज़े की बात हैँ क़ि  ये सब मैं  कितने  प्यार से  स्वीकार भी
कर लेता हूँ.
इसके बावजूद  भीअगर तुम मुझे दोष देती रहोगी
तों मुझे  कहने मे कोई संकोच भी नही हैँ क़ि
मैं   शुरू से ही विवादास्पद . हूँ

©Parasram Arora विवादस्पद

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