चल आजा हम हर एक ख़्वाब मुक़म्मल करते है आधे क़दम तुम आधा क़दम मैं, हर क़दम कुछ ऐसे हम चलते हैं थके हम मगर ना रुके हम, कुछ ऐसे हम हस़ल करते है चल आजा हम हर एक ख़्वाब मुक़म्मल करते है चल आजा हम हर एक ख़्वाब मुक़म्मल करते है ये घटाएं छुपा ना सके हमें, चल बादलों के पार निकलतें है उगते है उगते सूरज सा, और रात चाँद सा चल हम जलते है बना ख़्वाबों की दुनियां हम, वहीं कहीं हम ठहरते है बन के तहरीरें लफ़्ज़-ए-आलम, काग़ज़ हम पिघलते है चल आजा हम हर एक ख़्वाब मुक़म्मल करते है आधे क़दम तुम आधा क़दम मैं, हर क़दम कुछ ऐसे हम चलते हैं। ©Afroz Alam #Hum tum aur khawab#love