लेखक - आदर्श सिंह चौहान रचना - प्रेम के उपवन तुम आकर मिलना मुझे उस बगिया में जहाँ सारे पौधे ताप से मुरझा गए होंगे हम अपने प्रेम से पुनः उन्हें जीवन देंगें रंग बिरंगे फूलों से गुलिस्तां सजायेंगे जहाँ गुलाब की भांति हमारा प्रेम बसेगा और गुलमोहर की भांति उसका रंग सजेगा जहाँ हरसिंगार की भांति महक होगी और सूरजमुखी की भांति तेज होगी जहाँ चंपा चमेली की भांति सुगंध होगी और नील कमल की भांति रंगीनियां होगी जहाँ रोज़ हमारे प्रेम का नया पत्ता उगेगा और हमारा प्रेम सदाबहार सा खिलता रहेगा यह चमन तुम्हारे ह्रदय की शोभा बढ़ाएगा मय की बूँद सा यह नित प्रेम सुधा बरसाएगा रोज़ आना तुम इस प्रेम की उपवन में जहाँ प्रेम का फूल फिर कभी ना मुरझाएगा ______________ धन्यवाद 🙏 ©Adarsh Singh आदर्श सिंह चौहान रचना-प्रेम के उपवन मे (pv=nrt) राधे राधे जय श्री राम ठकुराइन