अजीब सी दास्ताँ है, ज़िंदगी के फसाने का, उफ़तादगी हो ख़ुद में फिक्र करते ज़माने का, ज्ञात नहीं निज रविश का, दुनिया के भीड़ में, वस्ल की रात में वादा करते वचन निभाने का, तौहीन-ऐ-मोहब्बत नजीबों की फितरत होती, कत्ल करके फ़िराक़ में रहते खंजर छुपाने का, दास्तान-ए-कर्ब-ओ-बला है ज़िंदगी की दास्ताँ, बस हौसला चाहिए दास्ताँ सरेआम सुनाने का। उफ़तादगी = निर्बलता रविश = आचरण वस्ल = मिलन तौहीन-ऐ-मोहब्बत = मोहब्बत का अपमान नजीबों= कुलीन मनुष्यों दास्तान-ए-कर्ब-ओ-बला= असीमित दुखों की कहानी 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏