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तुम समझते  क्यों  नहीं रात  की ख़ामोश  ज़ुबां मिले

तुम समझते  क्यों  नहीं 
रात  की ख़ामोश  ज़ुबां 
मिलेगा एक  बार  फिर 
सुबह का  कोई   निशां 
कोख़   से   अंधेरों   के 
फूटेगी जब  इक  किरन 
एक   नई   उम्मीद   से 
फिर जाग  उठेगा  जहाँ

©Alok Saxena
  #Ray