नदी के किनारे ठीक उसी नीलमोहर की छाव तले बैठ जाता हूँ आजकल, जिसे भेदकर धूप हमें छू भी नहीं पाती थी हाँ अकेले बैठना थोड़ा कठिन तो ज़रूर है, लेकिन ज़रा सी देर में तुम्हारी बातें याद आने लगती और मेरे अकेलेपन का इलाज़ हो जाता। फिर मैं भी तुम्हारी ही तरह छोटे-छोटे पत्थर नदी में फेंकता और उस आवाज़ को महसूस करता जब पत्थर नदी के सीने में समा जाती रेत पर उंगलियों से तुम्हारा और अपना नाम लिखता और फिर तुम्हारी ही तरह ख़ुद से कहता हमारे नाम एक साथ कितना अच्छा लगते हैं… है ना? -जॉनी अहमद ‘क़ैस’ ©Johnny Ahmed " क़ैस" #river #uskechalejaanese #uskechalejaanese