किसको समझेँ हम अपना , किसको देँ हम गम अपना । जो देखा था इक सपना था , जो पाया था इक धोखा था । खूब बने अब तक पागल , खूब हँसे, मदहोश रहे । हकीकत से जब चार हुये , ये रिश्ता चार दिनोँ का था । जिसको चाहा अब तक हमने, अपने दिल की गहराई से । उसने ही हमको जोड़ दिया, इक लंबी तन्हाई से । यशपाल सिँह "बादल" ©Yashpal singh badal भरोषा #alone