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किसको समझेँ हम अपना , किसको देँ हम गम अपना । जो दे

किसको समझेँ हम अपना ,
किसको देँ हम गम अपना ।
जो देखा था इक
सपना था ,
जो पाया था इक
धोखा था ।
खूब बने अब तक पागल ,
खूब हँसे, मदहोश रहे ।
हकीकत से जब 
चार हुये ,
ये रिश्ता चार
दिनोँ का था ।
जिसको चाहा अब तक हमने,
अपने दिल की गहराई से ।
उसने ही हमको 
जोड़ दिया,
इक लंबी
 तन्हाई से ।

यशपाल सिँह "बादल"

©Yashpal singh badal भरोषा

#alone
किसको समझेँ हम अपना ,
किसको देँ हम गम अपना ।
जो देखा था इक
सपना था ,
जो पाया था इक
धोखा था ।
खूब बने अब तक पागल ,
खूब हँसे, मदहोश रहे ।
हकीकत से जब 
चार हुये ,
ये रिश्ता चार
दिनोँ का था ।
जिसको चाहा अब तक हमने,
अपने दिल की गहराई से ।
उसने ही हमको 
जोड़ दिया,
इक लंबी
 तन्हाई से ।

यशपाल सिँह "बादल"

©Yashpal singh badal भरोषा

#alone