यूं ही इश्क़ से खुफ्तगू करते करते, कुछ बात ये हुई, इश्क़ ने बोला तुम जीते पर हार भी तो गए, मैं हारा पर जीत गया, ये कह कर इश्क़ ने फिर एक बार मेरी ओर रुख किया और मुझे निहारते हुए फिर मुझसे बोला (व्यंगात्मक शैली में)- जो ये थोड़ी तेरी आजादी है, मैं वो भी ले लूंगा, थोड़ा आओ तो सही, तुम्हे जीने नहीं दूंगा, मरना चाहे तो तुझे मारने ना दूंगा, बड़ी नासार लगती है मेरी जुदाई, साथ रहता हूं तो कितना खलती है, रोना चाहोगे तुम, पर रो भी ना पाओगे, अंदर से रो कर, बाहर सिर्फ मुस्कुराओगे, इतना क्या तुम सेह पाओगे? इतना कह कर इश्क़ थोड़ा रुका, फिर कुछ सोच कर वो हसने लगा, उसको हस्ता देख में भी थोड़ा सेहमा, थोड़ी देर शांत रहा फिर मैंने उसे पूछा की ए इश्क तू यूं क्यों हंस रहा है, ऐसी क्या बात है जो यूं बीच में रुक गया है। मुझे देख कर फिर इश्क़ बोला - अपनों में थोड़ा टेढ़ा दिखता हूं, दूसरों में थोड़ा सोना दिखता हूं, बाहें खोल कर अपनो तो सही, चंगुल में अपनी मैं तुम्हे फंसा भी लूंगा, अभी तुम मुस्करा लो, थोड़ा ही सही पर रुला मैं दूंगा, तुम वफ़ा करना, मैं तुम्हे बेवफ़ा भी दूंगा, तुम इश्क़ करना, मैं तुम्हे मतलब भी दूंगा, जो बची तेरी आज़ादी है, थोड़ी थोड़ी कर के तुझसे मैं लूंगा, तू मुस्कुरा ले, मैं तुझे रुला भी दूंगा। ये कह कर इश्क़ फिर मुस्कुराने लगा मुझे छू कर फिर इतराने लगा, मैं बात सुन कर उसकी थोड़ा सोच में पड़ गया। जो बोला ये, तो क्या अब मैं डर गया? बड़ी कश्मकश की मैंने इश्क़ से, थोड़ा सोचा, फिर मैंने भी इश्क़ से बोला - मैं हसुंगा और थोड़ा मुस्करा भी लूंगा, थोड़ा रो कर चुप करा भी लूंगा, कुछ जिल्लत भी मिलेगी राहों में मुझे, उनसे लड़ कर, थोड़ी ठोकर भी खा लूंगा, मरने की कोई मुझे ख्वाइश ना है, थोड़ा जी लूंगा, थोड़ा ज़िला भी दूंगा, रहमत जो होगी रब की, तुझे पा कर, तुझे हरा भी दूंगा, मेरी आज़ादी कहा कैद होगी, आसमानों से मैं, ये बतला भी दूंगा, तू बेवफा दे मुझे, मैं उसे भी अपना बना ही लूंगा। - वैवस्वत सिंह। #Kavyanjali