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शिव शंकर:- तिलक, त्रिपुण्ड, भस्म - विभूति धारी, त

शिव शंकर:-
तिलक, त्रिपुण्ड, भस्म - विभूति धारी, 
तेरी महिमा तीनो लोको से न्यारी,
 गले मे सर्प, रुद्राक्ष माला अति सोहे, 
सब जग जाये तुम पर बलिहारी ।।

जटा में गंगा, मस्तक पर चन्द्र सोहे,
 हाथ में त्रिशूल और डमरू साजै। 
तन पर वस्त्र खाल बाघाम्बर धारी,
 एहि सौंदर्य पे सब जग जाऊँ वारी ।।

है अनुपम, आलौकिक श्रृंगार तेरा, 
भाग, धतूरा, बेलपत्र अतिमन भाए ।
 दर्शन पाने को आतुर है मोरे नैना,
 भक्त तेरे आ गए है शरण तिहारी ।।

रोम-रोम शिवमय हो उठा मेरा,
 मन आंगन में गूंज रहा नाम तेरा ।
 हे भोले नाथ !! शिवशंकर त्रिपुरारी, 
मेरे संग संग झूम रही श्रृष्टि सारी ।।

©Archana Tiwari Tanuja
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18/02/2023