छूटी नहीं है,पढ़ाई हमारी अभी तक जारी है,जिन्दगी की किताब के पन्ने , पाठ पर भारी है एक, एक दिन,सालों पर भारी है खतम हुआ नहीं आज का,कल का होमवर्क जारी है उतरा नहीं है बस्ता,कन्धों पे बोझ भारी है लिखाई भारी-भरकम,अब दिन-रात जारी है आटा, दूध, दाल ,फल,सब्जियों के भाव से गणित की घनिष्ट यारी है,हमारी समझ में न आना ये विषय की नहीं, हमारी,मंद बुद्धी की लाचारी है कैसे समझ आए,ये गणित शास्त्र पहले की तरह ही,अब भी समझ पे भारी है दो का चार बनाना,ट्रिक जो है कुछ को ही आती है,बाकी सबकी मारामारी है कुछ रखते ज्यादा,आगे होशियारी है अक्ल से ज्यादा,नकल की भागीदारी है कुछ ने माना ,इसकी वैल्यू इतनी मानो,उतनी से अब काम चलाना जारी है उतरा नहीं है अभी बस्ता हमारा कन्धों से टंगा है पहले की तरह ही अब भी पढ़ाई जारी है। ©पूर्वार्थ #जारी_है