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चलो एक दफा अपनी आजादी के ओर चले। आ रही हो जहाँ से

चलो एक दफा अपनी आजादी के ओर चले।
आ रही हो जहाँ से खुश्बू बहारें ऐ चमन
चलो एक शाम उस मोड़ पर चले।
चलो एक दफा अपनी आजादी के ओर चले।
 
आजादी क्या बताऊँ मेरे चंद शब्दों में 
इतनी ताकत ही नही। इसकी कितनी 
बड़ी कीमत शहीदों ने चुकाई मुझे लगता है। 
इससे बड़ी कोई शहादत ही नहीं।
सुने हो गए कितने अॉचल और सुनी हो गई कलाई।। 
चलो उस मंजर पर जहाँ वीरों ने खून बहाई। 

चलो एक दफा शहादत की ओर चले। 
आ रही हो जहाँ से खुश्बू बहारें ऐ चमन ।
चलो एक शाम उस मोड़ पर चले। 
चलो एक दफा अपनी आजादी की ओर चले। 

बड़ा ताजुक होता है देख मुझे जमाने की रूशवाई। 
भूल जाते हैं लोग उसे ही जिसने देश के लिए 
अपनी बलि चढ़ाई। चॉद के आहट तले चलो
उस पत्नी से मिले जिससे रूठ गई पुरवाई। 
चलो एक दफा अपनी आजादी की ओर चले। 
Ritika shukla

©Ritika shukla Happy kargil day 

#OpenPoetry #poem competition happy kargil divas jai hind jai bharat
चलो एक दफा अपनी आजादी के ओर चले।
आ रही हो जहाँ से खुश्बू बहारें ऐ चमन
चलो एक शाम उस मोड़ पर चले।
चलो एक दफा अपनी आजादी के ओर चले।
 
आजादी क्या बताऊँ मेरे चंद शब्दों में 
इतनी ताकत ही नही। इसकी कितनी 
बड़ी कीमत शहीदों ने चुकाई मुझे लगता है। 
इससे बड़ी कोई शहादत ही नहीं।
सुने हो गए कितने अॉचल और सुनी हो गई कलाई।। 
चलो उस मंजर पर जहाँ वीरों ने खून बहाई। 

चलो एक दफा शहादत की ओर चले। 
आ रही हो जहाँ से खुश्बू बहारें ऐ चमन ।
चलो एक शाम उस मोड़ पर चले। 
चलो एक दफा अपनी आजादी की ओर चले। 

बड़ा ताजुक होता है देख मुझे जमाने की रूशवाई। 
भूल जाते हैं लोग उसे ही जिसने देश के लिए 
अपनी बलि चढ़ाई। चॉद के आहट तले चलो
उस पत्नी से मिले जिससे रूठ गई पुरवाई। 
चलो एक दफा अपनी आजादी की ओर चले। 
Ritika shukla

©Ritika shukla Happy kargil day 

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