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आशियाना ढूंढने को निकला था राहों में कुछ अनसुलझे ख

आशियाना ढूंढने को निकला था राहों में
कुछ अनसुलझे ख़्वाब पल रहे निगाहों में
बिछड़ गए साथी हाथों के फूल भी बिखर गए
जो पंखुड़ियां जोड़ा था घूमकर बाजारों में

ये हमदम हमनशीं बेकार की बाते हैं
जब भी निकला अकेला ही पाया खुद को
ठोकरों की चोट से दूर किया सबने यहां
मासूमियत की चादर लेकर निकला था रातों में

©Deepnarayan Upadhyay
  #asiyana
#khwab