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शाम सी दुल्हन, घूंघट ओढ़े बैठी है चाँदनी दूर से, रस

शाम सी दुल्हन, घूंघट ओढ़े बैठी है
चाँदनी दूर से, रस्ता देखे बैठी है

कोयल कू कू कर, सुरीली बनी बैठी है
और चाहत दिल में अरमान लिए बैठी है

कहाँ ये जा कर इंतेज़ार खत्म हो,
दूर तलक ही सही कहीं तो सफर खत्म हो।

©Barnwal Chhoti
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