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मैं ज़िक्र तेरा करता हूं इन तन्हा सी रातों से कैस

मैं ज़िक्र तेरा करता हूं इन तन्हा सी रातों से 
कैसे अब खुद को रोकूं इन बहतेजज़्बातोंसे
दिन-रात तेरे ही ख़्वाब और बस तू ही दिखाई देती है ।
अब नींद कहां है आंखों को करवटें गवाही देती है।

©Ashish Singh Negi
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