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सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ बस मैं हूँ,

सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ
बस मैं हूँ, तुम हो अपनी ही साँसों के दरमियाँ

चल हम चलते हैं, बादल, झरने, तितली पकड़ने
हाथों से उड़ फ़िर हाथों में बैठ तितली खेले जहाँ 
सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ

लकड़ी उठाएंगे चूल्हा चढ़ाएंगे
मिट्टी के बर्तन में खाना पकायेंगे
सब पूछेंगे वो दो पागल गए कहाँ
सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ

चाँदी सी नदी, सजी हो चाँद के श्रृंगार से
खिल जाएँ होंठ तेरे मेरे होंठों के प्यार से
सिमटी हो तू मुझमें पूरा तारों के उस गाँव में

तेरी पीठ पर फ़िर सीधे बादल टकराएँ जहाँ
सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ
बस मैं हूँ, तुम हो अपनी ही साँसों के दरमियाँ

©Sandeep Sati
  #दोटूक