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जो अभी तक छूआ ही नही तुमको वो हमपर से गुजरा होगा त

जो अभी तक छूआ ही नही तुमको
वो हमपर से गुजरा होगा तो कैसे गुजरा होगा

ये जो बह रहा इसे तो हम सुकून की हवा कहते है
वो जो हमपर बहा वो कैसा हवा होगा

दर्द का इन्तेहाँ ये नही है साहब
जो हमने सहा तो कैसे सहा होगा

तुम इन चिंगारियों से कैसे डर गए
सोचो उन अंगारो पर कोई कैसे चला होगा

                         -(क्षत्रियंकेश) अंगारे!
जो अभी तक छूआ ही नही तुमको
वो हमपर से गुजरा होगा तो कैसे गुजरा होगा

ये जो बह रहा इसे तो हम सुकून की हवा कहते है
वो जो हमपर बहा वो कैसा हवा होगा

दर्द का इन्तेहाँ ये नही है साहब
जो हमने सहा तो कैसे सहा होगा

तुम इन चिंगारियों से कैसे डर गए
सोचो उन अंगारो पर कोई कैसे चला होगा

                         -(क्षत्रियंकेश) अंगारे!
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अंगारे!