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शीर्षक - मैं पागल नहीं कि -----------------------

शीर्षक - मैं पागल नहीं कि 
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मैं पागल नहीं कि,
तुम बनाते रहे मुझको पागल,
और मैं लुटाता रहूँ तुम पर दौलत।

मैं पागल नहीं कि,
तुम चलाते रहे मेरी पीठ पर तीर,
और मैं बहाता रहूँ अपना खून तुम्हारे लिए,
मैं करता रहूँ अश्क़दान,
तुम्हारे चमन को हरा करने के लिए,
जिससे तुम सींचते रहे अपना बाग।

मैं पागल नहीं कि,
तुम करते रहे रोशन अपनी जिंदगी,
जलाकर मेरे अरमान और खुशियां,
और मैं जलाता रहूँ अपना घर,
तुमको रोशन और खुश करने के लिए।

मैं पागल नहीं कि, 
तुम करते रहे साकार तुम्हारे सपनें,
बलि मेरे सपनों की चढ़ाकर,
मैं बिगाड़ता रहूँ अपना नसीब,
ख्वाहिशें तुम्हारी पूरी करने के लिए।

मैं पागल नहीं कि,
तुम पहुंच जावो तुम्हारी मंजिल,
मेरी किश्ती पर सवार होकर,
मैं डुबो दूँ अपनी नैया,
तुमको साहिल पर पहुंचाने के लिए।




शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #मैं पागल नहीं कि
शीर्षक - मैं पागल नहीं कि 
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मैं पागल नहीं कि,
तुम बनाते रहे मुझको पागल,
और मैं लुटाता रहूँ तुम पर दौलत।

मैं पागल नहीं कि,
तुम चलाते रहे मेरी पीठ पर तीर,
और मैं बहाता रहूँ अपना खून तुम्हारे लिए,
मैं करता रहूँ अश्क़दान,
तुम्हारे चमन को हरा करने के लिए,
जिससे तुम सींचते रहे अपना बाग।

मैं पागल नहीं कि,
तुम करते रहे रोशन अपनी जिंदगी,
जलाकर मेरे अरमान और खुशियां,
और मैं जलाता रहूँ अपना घर,
तुमको रोशन और खुश करने के लिए।

मैं पागल नहीं कि, 
तुम करते रहे साकार तुम्हारे सपनें,
बलि मेरे सपनों की चढ़ाकर,
मैं बिगाड़ता रहूँ अपना नसीब,
ख्वाहिशें तुम्हारी पूरी करने के लिए।

मैं पागल नहीं कि,
तुम पहुंच जावो तुम्हारी मंजिल,
मेरी किश्ती पर सवार होकर,
मैं डुबो दूँ अपनी नैया,
तुमको साहिल पर पहुंचाने के लिए।




शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #मैं पागल नहीं कि
gurudeenverma5793

Gurudeen Verma

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