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" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, उलफ़ते-ए-हया

" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, 
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , 
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो ,
फ़ुर्क़ते-ए-हयात अब जो भी हो सो हो ,
 मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते. "

                   --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram  " इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, 
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , 
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो ,
फ़ुर्क़ते-ए-हयात अब जो भी हो सो हो ,
 मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते. "

                   --- रबिन्द्र राम
" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, 
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , 
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो ,
फ़ुर्क़ते-ए-हयात अब जो भी हो सो हो ,
 मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते. "

                   --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram  " इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, 
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , 
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो ,
फ़ुर्क़ते-ए-हयात अब जो भी हो सो हो ,
 मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते. "

                   --- रबिन्द्र राम